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कहानी

बीच प्रेम में गांधी

संतोष चौबे


सौमित्र जब कमरे में आया तो माधवी सो चुकी थी। कमरे में नीले बल्ब का हल्का-सा प्रकाश फैला हुआ था। माधवी ने पतली-सी सुंदर रजाई सीने तक खींच रखी थी और उसके चेहरे पर एक गहरी शांति की आभा थी।

सौमित्र अपनी जगह पर लेट गया। फिर उसने धीरे से करवट ली और अपना हाथ माधवी के उन्नत वक्ष पर रख दिया।

वह अक्सर शुरुआत इसी तरह करता था। यह शायद भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के कारण हो, या फिर फ्रायड द्वारा खोजी गई किसी ग्रंथि के कारण, कि उसे माधवी की देह में सबसे सुंदर चीज उसके सुडौल वक्ष ही लगते थे। वे शादी के इतने सालों बाद भी वैसे के वैसे थे और, जैसा कि कई महिलाओं के साथ होता है, न तो फैले थे और न भद्दे ढंग से बेडौल हुए थे।

अब वह धीरे-धीरे उनसे खेलेगा। फिर माधवी के चेहरे के हल्के से कई चुंबन लेगा। माधवी जाग जाएगी और उसकी तरफ करवट लेकर उसे प्रगाढ़ आलिंगन में बाँध लेगी। फिर बहुत देर तक वे इसी मुद्रा में रहेंगे। एक-दूसरे को सहलाते हुए, चूमते हुए, प्यार करते हुए।

प्रेम की पूरी प्रक्रिया में चुंबन और आलिंगन उसे सबसे अच्छे लगते थे। सहज, सुंदर और मानवीय। लेकिन जिसे असल चीज कहा जाता है, वह उसे आमतौर पर एक बड़ी भद्दी प्रक्रिया लगती थी। वैसा करते समय मनुष्य एकदम जानवरों की तरह दिखता होगा, ऐसा उसका मानना था। पर कैसी विडंबना थी कि सोच में इतने बदलाव आने के बावजूद इस प्रक्रिया को सभी को अपनाना पड़ता था। सौमित्र को भी।

उसने धीरे-धीरे माधवी के वक्ष को सहलाना शुरू किया। माधवी ने अचानक उसका हाथ उठाया और सीने से अलग कर दूसरी ओर करवट ले ली।

सौमित्र थोड़ा अचकचा गया। उसने इस बार माधवी की कमर में घेरा बनाया और उसे पास लाने की कोशिश करने लगा।

माधवी ने एक बार फिर उसका हाथ अलग करते हुए कहा -

'सोने दो भाई।'

सौमित्र का उत्साह ठंडा पड़ गया। अब वह सीधा लेटकर सोने की कोशिश करने लगा। पर नींद का कहीं अता-पता नहीं था। उसने दूसरी ओर करवट ली कि नींद शायद उस तरफ हो, पर नींद वहाँ भी नहीं थी। अचानक एक विचार उसके मन में आया -

'क्या माधवी आजकल अक्सर ऐसा नहीं करने लगी है?'

उसने इस विचार को दूसरी ओर झटकने की कोशिश की। पर विचार मन से गया नहीं। हाँ, ऐसा ही तो था। पहले सीने पर सौमित्र का हाथ पाते ही वह जाग जाती थी या जागते रहकर ही उसकी प्रतीक्षा करती थी। कितने प्रेम से वह उसके चुंबन वापस करती थी, कैसे उत्साह से उसे अपने आलिंगन में भरती थी। कैसे उसके शरीर की भीनी-भीनी सुगंध सौमित्र के मन में फैलती जाती थी। पर अब?

अब अक्सर वह दूसरी ओर करवट कर लेती है। पिछली तीन-चार बार ऐसा ही हुआ था। शायद यह एक पैटर्न ही बनता जा रहा था। तो क्या, तो क्या...

क्या मुझमें आकर्षण नहीं रहा? सौमित्र ने सोचा। पिछले तीन-चार वर्षों में उसके बाल अचानक सफेद हुए थे और मूँछें भी। सामने माथे की ओर से गंजापन झाँकने लगा था। शरीर का वजन भी कुछ बढ़ा था। पर उसने कभी इन बातों की चिंता नहीं की। उसका मानना था कि प्रेम में दिल और दिमाग ज्यादा महत्वपूर्ण हैं और उसे अपनी संवेदनशीलता और बुद्धिमत्ता पर पूरा भरोसा था।

पर ये भी तो हो सकता है कि माधवी के लिए शरीर ज्यादा महत्वपूर्ण हो? और अब उसे मेरे शरीर में ज्यादा आकर्षण न दिखता हो, सौमित्र ने सोचा। उसने एक सात वर्षीय ग्रंथि के बारे में सुन रखा था जिसके अनुसार करीब सात सालों में आम स्त्री अपने पति से बोर हो जाया करती है और कहीं और सहारा खोजती है। कहीं माधवी भी मुझसे बोर तो नहीं हो गई?

सौमित्र का दिल गहरी निराशा से बैठने लगा। वाकई ऐसा ही था। अब न तो वह सुंदर रह गया था, न आकर्षक। अगर माधवी की रुचि उसमें कम होती जा रही थी, तो इसमें उसका कोई दोष न था।

उसके मन में एक अजीब विचार आया। अच्छा हो अगर उसे कोई बड़ी बीमारी हो जाए। जैसी टीबी या किडनी की खराबी या कैंसर ...तब शायद दो-तीन साल लोग उसकी फिक्र करेंगे और माधवी भी चिंता करेगी। उसने जैसे कि स्वप्न में देखा, माधवी उसके सिरहाने बैठी है, उसे दवा दे रही है, उसके स्वास्थ्य की चिंता कर रही है, किसी कोने में छुपकर दो आँसू बहा रही है, और उसके लिए फिक्रमंद है। उसके लिए डाक्टरों से मिल रही है और रिश्तेदारों की चिंताओं का धैर्यपूर्वक समाधान कर रही है।

पर यह सब सोचने के बाद उसे लगा कि ये जो कुछ भी होगा, प्रेम नहीं होगा। दया या करुणा होगी और उसकी मूल चिंता थी कि माधवी उससे प्रेम करे।

नहीं। इस तरह से प्रेम बढ़ाने के बारे में सोचना मूर्खता है। मॉरबिडिटी है।

तो फिर अगर माधवी ने उसे पसंद करना कम कर दिया है और शायद किसी और को पसंद करना शुरू कर दिया है, तो क्या यह बेहतर न होगा कि उससे साफ-साफ बात कर ली जाए, और फिर उसे इस बात की स्वतंत्रता दी जाए। सौमित्र प्रगतिशील विचारों का आदमी था और अक्सर बातचीत में गर्व से इस बात का जिक्र करता था कि अगर शादी के बीच में पति पत्नी में ऊब पैदा होती है तो उन्हें दूसरी जगह सहारा खोजने का अधिकार है, और अगर उसकी पत्नी ने ऐसा किया, तो वह उसे नहीं रोकेगा। पर इस वक्त वह इस तरह की किसी स्वतंत्रता की कल्पना नहीं कर पाया। वह माधवी से बहुत प्यार करता था और अगर उसने किसी दूसरे व्यक्ति को उसके स्थान पर रखा, तो उसे बहुत चोट पहुँचेगी।

उसका मन एक दार्शनिक उदासी से भर गया। ठीक है अगर माधवी उससे दूरी बनाना चाहती है तो वह भी उससे दूरी रखेगा। उसका भी तो कोई आत्मसम्मान है? वह घर में रहेगा, पर न तो माधवी से प्यार करने की कोशिश करेगा और न ही अपनी ओर से कोई शुरुआत करेगा। हाँ अगर उसने कभी रुचि दिखाई तो...

नहीं, यह भी नहीं। माधवी को अपनी कठोरता का कुछ तो फल मिलना ही चाहिए। यह नहीं हो सकता कि अगर चाहे तो मुझसे प्यार कर ले और चाहे तो कहीं और सहारा खोज ले। नहीं, अगर उसने मुझमें रुचि भी दिखाई तब भी मैं उससे प्यार नहीं करूँगा...

पर क्या इतनी ही कठोरता काफी है? क्या उसे कुछ और कठोर नहीं होना चाहिए? उसके तमाम विश्वास, तमाम प्यार के बदले में माधवी के इस व्यवहार के लिए सिर्फ इतनी कठोरता काफी नहीं। वह अपने आप को दुख पहुँचाएगा और उसे भी दुख देगा। वह उससे कई महीनों तक प्यार नहीं करेगा और फिर एक दिन, जब वह बाहर गई होगी, आत्महत्या कर लेगा। उसने एक और चित्र देखा। माधवी बाहर से लौटी है और बिस्तर पर उसकी मृत देह पड़ी है। माधवी पहले तो कुछ समझ नहीं पाती। फिर उसे आवाज लगाती है। उसके साथ जो अन्याय उसने किए थे उन्हें सोच-सोच कर वह गहरे पश्चाताप में डूब जाती है। उदास होती जाती है, उदास होती जाती है...

अचानक उसकी तंद्रा टूटी। ये बहुत ही टुच्चा और घटिया विचार है, उसे लगा। आत्महत्या क्यों? वह हर समय आत्महत्या के खिलाफ रहा है। उसे माधवी की उपेक्षा का दुख एक सहृदय और धैर्यवान आदमी की तरह झेलना चाहिए। अगर वह अपने आपको मार लेता है तो इससे क्या सिर्फ माधवी को दुख होगा? उसके ध्रुव तारे से बेटे और रोशनी-सी बिटिया का क्या होगा? क्या उन्हें अगाध कष्ट नहीं होगा? दुख नहीं उठाना पड़ेगा।

तब उसे लगा कि वह इस दुख से बचने के लिए कुछ वर्षों के लिए घर छोड़ दे। उसे राजा भृर्तहरि की याद आई। सब कुछ था उनके पास। राज-पाट गाड़ी-घोड़े सभी कुछ। बस रानी के प्रेम के सिवा। कैसे उन्होंने एक दिन सब छोड़कर संन्यास ग्रहण किया होगा। कितनी हिम्मत से वे झोली लेकर भीख माँगने निकले होंगे, और कितनी पीड़ा के साथ वे खड़े हुए होंगे जाकर रानी के द्वार पर? कितना बड़ा दुख, कितनी गहन निराशा, कैसी महान उदासी...

पर घर छोड़ने से भी बेहतर क्या यह नहीं होगा कि जिस कारण से उसे यह कष्ट उठाना पड़ रहा है, जिस कारण माधवी उसे नीचा दिखा पा रही है, वह उस कारण को ही छोड़ दे? यानी प्रेम करने की इच्छा का ही त्याग कर दे?

अचानक उसे गांधी की याद आई। सबसे सही आदमी गांधी जी ही थे, उसने सोचा, अगर वह प्रेम और सेक्स की इच्छा का ही परित्याग कर दे, तो जाने कितने कष्टों से बच जाएगा। न उसे माधवी की उपेक्षा की चिंता होगी, न ही उसके किसी दूसरे पुरुष से प्रेम करने पर कष्ट होगा। क्योंकि तब वह प्रतियोगिता में ही नहीं होगा। गांधीजी लगभग उसकी उम्र के ही रहे होंगे। जब उन्होंने सेक्स का परित्याग किया, उसके बाद कितना समय, कितना ध्यान वे अपने मुख्य लक्ष्य की ओर लगा पाए, यह सब जानते हैं, यही सबसे ठीक है, उसने सोचा।

त्याग और तप का एक उजाला-सा उसके दिल में फैलने लगा। वह कठिन निश्चय लेने की ओर अग्रसर होने लगा।

तभी माधवी ने उसकी ओर करवट ली और अलसाई आवाज में कहा,

'सो गए क्या?'

वह जाग रहा था, पर उसने कोई जवाब नहीं दिया।

माधवी ने फिर कहा -

'नाराज हो गए? सुनो, आजकल हम दिन भर काम के कारण बहुत थक जाते हैं।'

फिर वह उठी उसने सौमित्र के माथे पर एक भरपूर चुंबन लिया और उसे अपने चिर-परिचित आलिंगन में बाँध लिया।

गांधी जी पता नहीं कहाँ चले गए।


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